Sunday, July 10, 2016

मला आवडलेल्या गझल्स - इक खलिश को


ह्या गझल चे शायर आहेत, अदीब सहरानपुरी.

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इक खलिश को हासिल-ए-उम्र-ए-रवां रहने दिया
जान कर हमनें उन्हें ना मेहरबां रहने दिया

कितनी दीवारों के साए हाथ फैलाते रहे
इश्क नें लेकिन हमें बेखानुमा रहने दिया

अपने अपने हौसले अपनी तलब की बात है
चुन लिया हमने उन्हें सारा जहाँ रहने दिया

यह भी क्या जीने में जीना है बैगैर उनके अदीब,
शम्मा गुल कर दी गयी बाकी धुआं रहने दिया

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अदीब सहरानपुरी
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काही अर्थ :
खलिश = pain, दर्द
रवां = moving or to continue
हासिल = gain
बेखानुमा = बेघर, कंगाल
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ह्या सुंदर शायरीला त्याहूनही सुंदर चाल दिलीय आणि गाइलेत मेहदी हसन. त्यांच्या आवाजात ही गझल ऐकणे म्हणजे एक मस्त अनुभव आहे.

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